(रवीश कुमार) राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी की माँ को गाली नहीं दी। तेजस्वी यादव ने नहीं दी। दोनों ने प्रधानमंत्री मोदी को चोर ज़रूर कहा और कई बार कहा। लेकिन चोर कहने के खिलाफ कोई प्रदर्शन नहीं हुआ? 2019 में भी राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी को चौकीदार चोर है कहा था। तब बीजेपी के कार्यकर्ता और नेता भावुक हो गए और सबने कहा कि अगर देश का चौकीदार चोर है तो हम भी चौकीदार है। चोर का विरोध करने का यह तरीका समझ नहीं आया लेकिन बीजेपी को लगा कि लोग वही मानते हैं जो बीजेपी कहती है। पिछले महीने राहुल गांधी और तेजस्वी यादव प्रधानमंत्री मोदी को बिहार की सड़कों पर घूम-घूम कर वोट चोर कहते रहे। इस बार कोई भावुक नहीं हुआ। बीजेपी के किसी नेता या समर्थक ने नहीं कहा कि प्रधानमंत्री मोदी वोट चोर हैं तो हम भी वोट चोर हैं।
प्रधानमंत्री मोदी को वोट चोर कहने पर बीजेपी ने बिहार बंद का आह्वान नहीं किया। क्या बीजेपी के समर्थकों को चोरी दिखने लगी है? बीजेपी ने क्यों नहीं वोट चोर कहे जाने का सड़क पर उतर कर विरोध किया? वैसे तो चोर का इस्तेमाल गाली के रूप में भी होता है लेकिन शायद बीजेपी यह जानती है कि चोरी मूलत: एक अपराध है। चोरी का आरोप लगता है तो जाँच होती है और फिर मुकदमा चलता है और तब फैसला आता है। यहां तो चुनाव आयोग ने ही जाँच नहीं की जिससे बीजेपी को वोट चोरी जैसे नारों का जवाब मिल पाता।
गाली निंदनीय है। इसकी निंदा वे भी करते हैं जो गाली देते हैं। तब निंदा करते हैं जब पकड़े जाते हैं या वीडियो वायरल हो जाता है लेकिन अगर ऐसा न हो तो बात-बात में गाली देते रहते हैं। यह ग़लत है। ख़राब भी है। प्रधानमंत्री की मां को जिस व्यक्ति ने गाली दी उसकी निंदा सबने की। वे दुनिया में रहतीं तब भी बुरा था, आज नहीं हैं तब भी बुरा है। उनकी माँ आदरणीय थीं और रहेंगी। खूब अच्छा और स्वस्थ्य जीवन जीकर गई हैं। किसी पर निर्भर नहीं रहीं। ऐसे लोग कम होते हैं।
लेकिन राहुल गांधी ने उनकी माँ को गाली नहीं दी तो राहुल गांधी से क्यों जोड़ा जा रहा है? राहुल गांधी न तो उसे फोलो करते हैं और न उसका बचाव किया है। कांग्रेस ने भी उसका बचाव नहीं किया है और तेजस्वी यादव ने भी नहीं। तेजस्वी यादव तो बकायदा एक गोदी चैनल के कार्यक्रम में कई सारे प्रमाण लेकर बता रहे थे कि प्रधानमंत्री मोदी ने कब कब गाली दी। राहुल गांधी की माँ को उन्होंने जर्सी और कांग्रेस की विधवा कहा।
पहले लोग सड़क पर गाली देते थे, सड़क से सत्ता के विरोध में गाली दी जाती थी। इसके अलग अलग रुप होते थे लेकिन 2014 के बाद से गाली सत्ता की अपनी सत्ता हो गई और सत्ता की अपनी गाली हो गई। भारत की राजनीति में गाली को सत्ता के हथियार के रुप में किसने स्थापित किया। लाखों की संख्या में मोदी समर्थक गालियाँ देने लगे। आई टी सेल ने नई नई गालियों की सप्लाई की ताकि लोग तरह-तरह से गाली देते रहे। संवैधानिक काम को भी गाली में बदल दिया गया कि आप बोल रहे हैं तो आप देशद्रोही हैं। सबसे अधिक गालियाँ मुसलमानों को दी गईं। मुसलमानों के नाम से आलोचकों को गालियाँ दी गईं। यानी जब मोदी सरकार से सवाल पूछने वालों को गालियां दी जा रही थीं तब भी मुसलमानों को ही दी जा रही थीं क्योंकि उनके चेहरे को दाढ़ी वाले मुसलमान की तरह बनाया जाने लगा, उनके नाम को बिगाड़ कर मुस्लिम नाम रखा जाने लगा।
सोशल मीडिया के पन्नों से हज़ारों प्रकार की गालियों का संग्रह किया जा सकता है। लोकसभा में रमेश बिधूडी ने दानिश अली को गाली दी मगर सब चुप रहे। उन गालियों की बात की जाए तो पता चलेगा कि किस तरह का राजनीतिक समाज तैयार किया गया है। मुसलमानों को गाली देने के अलावा और भी विशेषणों और सर्वनामों से उन्हें टारगेट किया गया, जिसे आराम से गाली की श्रेणी में रखा जा सकता है। गोली मारने के नारे में साला किसने लगाया था और उसके पक्ष में कौन खड़ा था। रमेश बिधूड़ी ने हाल ही में सांसद महुआ मोइत्रा को गाली दी। जो शब्द लिखा, उसे नहीं लिखना चाहता। क्या उनके खिलाफ कोई कार्रवाई हुई? बिहार बंद के दौरान बीजेपी को एक काम करना चाहिए। रमेश बिधूड़ी को आगे करना चाहिए ताकि जनता को पता चले कि इन्होेंने कितनी गालियाँ दी हैं और ये गाली के विरोध में बिहार बंद कराने आए हैं।
इसके अलावा जिसने भी मोदी सरकार से सवाल पूछे हैं आप उसकी टाइम लाइन पर जाकर देखिए, कितनी गालियाँ मिलेंगी। माँ बहन की गालियाँ आज आपको लिखित रुप में हर सोशल मीडिया पेज पर लिखी मिलेंगी। मेरी माँ को भी गाली दी गई। कौन दे रहा था वह केवल एक व्यक्ति नहीं था बल्कि मोदी का समर्थन करने वाले हज़ारों लोग मेरे वीडियो के नीचे आकर गाली दे रहे थे। गाली लिख कर प्रचारित कर रहे थे। मैं ही अकेला नहीं हूँ, मेरे जैसे सैंकड़ों लोग हैं जिन्हें गालियाँ दी गईं। महिला पत्रकारों को जिस तरह से गालियाँ दी गई हैं, उन्हें क्या क्या कहा गया है, अगर उसी की लिस्ट बना दी जाए तो किसी के पास जवाब नहीं बचेगा।
बिहार के केस में जिसने गाली दी उसका बचाव किसी ने नहीं किया लेकिन उसकी गाली का ज़िम्मा अगर राहुल गांधी पर थोपा जा रहा है तो फिर दानिश अली से लेकर लाखों मुसलमानों को जो गालियाँ दी जा रही हैं, आलोचकों को जो गालियाँ दी जा रही हैं, क्या उसका ज़िम्मा प्रधानमंत्री मोदी के कंधों पर थोपा जा सकता है ? प्रधानमंत्री खुद गाली देने वालों को फॉलो करते हैं। इसके कई उदाहरण सोशल मीडिया पर दिए जा चुके हैं। उनके खुद के बयान चल रहे हैं। जिससे पता चलता है कि वे अपने राजनीतिक जीवन में गाली के विरोधी नहीं रहे हैं।
गोदी चैनलों पर विपक्षी प्रवक्ताओं को कितनी गालियाँ दी गई हैं। सुरेंद्र राजपूत की माँ को गाली दी गई। महिला प्रवक्ताओं को गालियाँ दी गई हैंं। बीजेपी ने कभी इन प्रवक्ताओं को हटा कर संदेश नहीं दिया कि अब सत्ताधारी दल हैं। हमारा आचरण अनुकरणीय होना चाहिए। उसने गालियों का इस्तेमाल राजनैतिक हथियार के रूप में किया। इस क्रम में गालियों को लिखने का नया तरीका निकाला गया। कंप्यूटर के की बोर्ड पर मौजूद स्टार, हैशटैग के चिन्होंने के इस्तेमाल से नई नई गालियाँ लिखी गई हैं। पुरानी गालियों की समानार्थी गालियाँ बनाई गईं ताकि कानूनी कार्रवाई से बच सके और गालियाँ दी जा सकें। गाली अब गाली नहीं है बल्कि राजनैतिक शब्दावली है और इसे इस रूप में स्थापित 2014 के बाद से किया गया है। राजद प्रवक्ता सरिता पासवान को सीड़ा साया खोलने की धमकी देने वाला व्यक्ति प्रधानमंत्री के साथ खड़ा है। दोनों एक दूसरे के आगे ऐसे नतमस्तक हैं जैसे प्रधानमंत्री मोदी अगर कुछ भी हैं तो इन गालीबाज़ों के सहारे ही हैं। कायदे से जिसने गाली दी है उसे प्रधानमंत्री के सामने जाने से पहले दस बार सोचना चाहिए लेकिन तस्वीर में प्रधानमंत्री ही उसके आगे नतमस्तक हैं।
आधा दिन का बिहार बंद करने से गाली ख़त्म नहीं होगी। वोट चोरी के मुद्दे पर बिहार बंद करना था कि हमें चोर कहा गया, हमने वोट चोरी नहीं की लेकिन वोट चोरी के जवाब में सड़क पर उतरने के लिए गाली का सहारा लिया जा रहा है। अगर वाकई बीजेपी गंभीर है तो उसे गाली के खिलाफ खुद को एक दिन के लिए बंद कर लेना चाहिए और सभी को साफ संदेश देना चाहिए कि आज के बाद से गाली बर्दाश्त नहीं की जाएगी। बिहार की जनता को मुद्दे चाहिए। मुद्दों के बदले गाली मुद्दा नहीं चाहिए। बीस साल से नीतीश कुमार सत्ता में हैं। ज़्यादातर समय दोनों की ही सरकार रही है। बीजेपी को अपने काम को दिखा कर भावुकता पैदा करनी चाहिए। गाली बंद होनी चाहिए।
(यह लेख लेखक की अनुमति से प्रकाशित किया जा रहा है)
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