"लाइक और स्पर्श के बिना प्रेम पूरा होता है और न फ्रेम"| Ravish Kumar Sahitya|Ladai Ja Hai|

लेखक: रविश कुमार(देश के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार)

मैंने बहुत सारी तस्वीरें देख ली हैं। बहुत हसीन से लेकर बहुत मनोरंजक तक। इंस्टा पर देखता ही रहता हूं। यह एक ऐसा वॉर्डरोब है जिसमें बहुत सी ख़ूबसूरत तस्वीरें तह कर रखी हुई हैं। एक हटाता हूं तो दूसरी ख़ूबसूरत तस्वीर आ जाती है। ज़्यादा कपड़े पहनने का सुख उड़ा ले जाते हैं, ज़्यादा ख़ूबसूरत तस्वीरें देखने का सुख उड़ा ले जाती हैं। अभी ठीक से निगाह टिकती नहीं कि तस्वीर बदल जाती है। 
तस्वीर- दीदारगंज की यक्षी, बिहार संग्रहालय

जिन्हें देखना मिलना भी होता था, उन्हें अब केवल देखना होता है। मिलने की चाहत ख़त्म होती जा रही है। जिनसे नहीं मिला हूं, लगता है अभी-अभी तो देखा है।इंस्टा रूक कर देखने नहीं देता, बस वक्त की तरह भगाता रहता है। हर अदा अब फ्रेमवत है। हर निगाह अब फ्रेमवत है। एक ही फ्रेम में एक से अधिक लोगों को देख चुका हूं। एक ही फ्रेम को एक से अधिक लोग देख रहे हैं। मैं भी फ्रेमवत अचानक कहीं से ड्रॉप हो जाता हूं। चाहे जाने की निजी आकांक्षा पहले से लोकतांत्रिक हो गई है। जनआकांक्षा में बदल गई है। अब एक प्रेमी का राज ख़त्म हो गया है। अनगिनत और अनजान से चाहे जाते रहने का ख़्वाब हर फ्रेम में दिखाई देता है। 

अनायास कई बार ‘फ्रेमवत बदन’ ‘वेपन’ हथियार की तरह दिखने लगता है। जिसे बहुत से लोगों ने लाइक के ज़रिए छू लिया है। सबने अपने शरीर में फ़्रेम का कोना खोज लिया है। हर फ़्रेम में अलग-अलग कपड़ों में उसी कोने में तिरछे दिखाई देते है। हमने इश्क में डूबे हुए से इंसानों से लेकर बिल्लियों की दीवानगी को भी फ्रेमवत देखा है। फ्रेमवत जड़वत से आगे की मुद्रा है। कितना अच्छा है कि इंसान अपने बदन के प्यार में इतना डूबा है। साड़ी की दुकान में लोग कतार से बैठे हैं। 

दुकानदार रैक से साड़ी उतार कर किस तरह खोलता है। देखते-देखते एक साड़ी के ऊपर दूसरी और दूसरी के ऊपर तीसरी साड़ी गिरती चली आ रही है। सुंदरता के ऊपर सुंदरता। ख़ूबसूरती ख़ूबसूरती को काट रही है।उमंग से उदासी पैदा हो रही है। बिहार संग्रहालय का हर अंधेरा सा कोना हथिया लिया गया है। प्रेमिका इंस्टा पर अपलोड होने की मुद्रा में खड़ी है। इसी तरह किसी शिल्पकार ने सदियों पहले किसी को घंटों जड़वत देखा होगा, फिर उसे तराश कर मूर्तिवत किया होगा। प्रेम में देखते रहने और बातें करने की तड़प की कल्पना सच भी है या नहीं!  

म्यूज़ियम के अंधेरे गलियारे से गुज़रते हुए वही दिखा जो इंस्टा पर दिखता है। केवल लाइक करने की चाह है और लाइक करना है। लाइक मतलब छूना। हर फ्रेम में स्पर्श के आनंद की चाह है। स्पर्श की गिनती है। वह संख्या भी है। लाइक्स और स्पर्श के बिना तो प्रेम पूरा होता है और न फ्रेम। जिस शहर के हर कोने में मच्छरों ने पहले से डेरा जमा लिया है, उस शहर के हर ऐसे कोने में दो प्रेमी एक दूसरे को लाइक करते हुए देखे जा सकते हैं। अशोक स्तंभ की विशाल तस्वीर के नीचे एक लड़का मदहोश हालत में चिपका खड़ा था। लड़की अपने सम्राट की तस्वीर उतार रही थी, वह इंस्टा पर अपलोड होने वाला था । यही हमारे समय का शिलालेख है। इंस्टा पर हम सब शिलालेख हो चुके हैं। फ़्रेमवत शिलालेख। 

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